दोस्तों! वैसे तो आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा ख़ान रहमतुल्लाह अलैह किसी तआरुफ़ के मोहताज नहीं।
दुनिया-ए-सुन्नियत का बच्चा-बच्चा उनका नाम जानता है।
लेकिन इस वीडियो/किस्से में हम आपको आला हज़रत की ज़िंदगी से कुछ ख़ास बातें और अहम वाक़यात सुनाने जा रहे हैं।
तो आख़िर तक ज़रूर बने रहिए ताकि आपको सही मालूमात हासिल हो सके
✨ पैदाइश और ख़ानदान
आला हज़रत की पैदाइश हिंदुस्तान के शहर बरेली शरीफ़ में हुई।
📅 तारीख़: 10 शव्वाल 1272 हिजरी, दिन: शनिवार, वक़्त: ज़ुहर।
यह तारीख़ 14 जून 1856 ईसवी के मुताबिक़ है।
आपके वालिद-ए-माजिद मौलाना नकी अली ख़ान रहमतुल्लाह अलैह एक जलील-उल-क़द्र आलिम-ए-दीन थे।
ज़ाहिरी और बातिनी दोनों उलूम में उनका बड़ा मर्तबा था।
आला हज़रत का असल नाम मोहम्मद रखा गया।
आपके दादा ने आपको अहमद रज़ा कहकर पुकारा और यही नाम इतना मशहूर हुआ कि पूरी दुनिया आपको आज “आला हज़रत” के नाम से जानती है।

📖 इल्मी कमालात
आला हज़रत अल्लाह तआला के बड़े मक़बूल बन्दे और दीने इस्लाम के सच्चे खिदमतगार थे।
अल्लाह ने आपको इल्म और समझ-बूझ की ऐसी दौलत बख़्शी थी कि छोटे से उम्र से ही आपकी ज़ेहनी काबिलियत सब पर साफ़ नज़र आने लगी।
सिर्फ़ साढ़े चार साल की उम्र में आपने पूरा क़ुरआन-ए-पाक नाज़िरा पढ़ लिया।
छह साल की उम्र में आपने जश्न-ए-मीलादुन्नबी ﷺ के मौके पर ऐसा बयान फरमाया कि बड़े-बड़े आलिम दंग रह गए।
सब हैरान थे कि इतने छोटे बच्चे को मुस्तफ़ा ﷺ के बारे में इतनी गहरी मालूमात कैसे है।
🕌 फ़तवा देने की उम्र
दोस्तों! सोचकर ताज्जुब होता है कि जब दूसरे बच्चे खेल-कूद में लगे रहते हैं, उस वक़्त आला हज़रत एक अज़ीम आलिम बन चुके थे।
सिर्फ़ 13 साल 10 माह 4 दिन की उम्र में आपने पहला फतवा दिया।
ये फतवा “हुरमत-ए-रज़ाअत” (दूध के रिश्ते) के बारे में था।
आपके वालिद ने जब इसे पढ़ा तो बहुत खुश हुए और आपको मुफ्ती का मनसब सौंप दिया।
इसके बावजूद आला हज़रत तवील अरसे तक अपने वालिद को फतवे दिखाते रहे।
यानी इतनी कम उम्र में भी इल्म और अदब का ये आलम था।
⭐ आला हज़रत की इल्मी और अदबी ज़िंदगी
दोस्तों! आपने देखा कि आला हज़रत कितनी छोटी उम्र में मुफ़्ती बन गए थे।
अब आइए जानें उनके इल्म और अदब की दुनिया कैसी थी।

📚 इल्म और तहरीरात
आला हज़रत कई फुनून (शाख़ों) के माहिर थे।
उन्होंने सिर्फ़ फिक़्ह और हदीस ही नहीं बल्कि तफ़सीर, तसव्वुफ़, साइंस, हिसाब, हिकमत और बहुत से फनून में कमाल हासिल किया।
आपने हज़ार से ज़्यादा किताबें लिखीं।
इनमें तफ़सीर, हदीस, फिक़्ह, कलाम, और अदब सब शामिल हैं।
आपका तरजुमा-ए-कुरआन – “कंजुल ईमान” – आज पूरी दुनिया-ए-सुन्नियत में पढ़ा और समझा जाता है।
इसके अलावा आपका फतवा, जो तक़रीबन 33 जिल्दों में है, दुनिया का सबसे बड़ा फतवा माना जाता है।
इस इल्मी शाहकार का नाम है:
“अल-अता या नबी फिल-फ़तावा रज़विया”।
इस किताब में लगभग 22,000 सफ़्हात और तक़रीबन 6847 सवाल-जवाब दर्ज हैं।
यानी इस्लाम की हर मसअला पर आला हज़रत ने दलील के साथ रहनुमाई फरमाई।
✒️ शायरी और इश्क़-ए-रसूल ﷺ
दोस्तों! जहां शायरी दम तोड़ देती है, वहीं से आला हज़रत की शायरी शुरू होती है।
क्योंकि उनकी शायरी किसी दुनियावी मक़सद के लिए नहीं थी, बल्कि वो इश्क़-ए-रसूल ﷺ में डूबकर नात-ए-पाक लिखते थे।
आज दुनिया भर के नातख़्वां अपनी महफ़िलों की शुरुआत आला हज़रत की लिखी नात से करते हैं।
उनकी नातों में वो असर है कि सुनने वाला रो उठता है और दिल से “सुभान अल्लाह” कह उठता है।
🕌 दीने इस्लाम की ख़िदमत
आला हज़रत ने अपनी पूरी ज़िंदगी इस्लाम की ख़िदमत में गुज़ार दी।
उन्होंने इस्लाम के दुश्मनों को बेनक़ाब किया, और हर उस फ़ितने को जवाब दिया जो मुसलमानों को गुमराह करने की कोशिश करता था।
उनकी इल्मी और रुहानी कोशिशों की वजह से मुसलमानों का ईमान मज़बूत हुआ और आज तक उनका फ़ैज़ जारी है।

🦁 जंगल का सफ़र और शेर
कहा जाता है कि आला हज़रत एक बार सफ़र में थे।
सफ़र के दौरान काफ़िला एक ऐसे जंगल से गुज़र रहा था जहाँ लोग कहते थे कि बहुत ख़तरनाक शेर रहते हैं।
लोगों में डर था कि कहीं हमला न हो जाए।
इसी दौरान अचानक एक बड़ा और डरावना शेर काफ़िले के सामने आ गया।
सब लोग सहम गए, लेकिन आला हज़रत बिल्कुल बेख़ौफ़ थे।
✨ आला हज़रत की दुआ
आला हज़रत ने फ़ौरन अल्लाह की तरफ़ तवज्जुह की और दुआ की:
“ऐ अल्लाह! हम तेरे हबीब ﷺ के उम्मती हैं, हमारी हिफ़ाज़त फ़रमा।”
जैसे ही दुआ की, शेर एकदम ठहर गया।
फिर आला हज़रत ने उस शेर की तरफ़ देखा और कहा:
“अगर तू अल्लाह का बंदा है तो हमें नुक़सान न पहुँचा, बल्कि हमारी हिफ़ाज़त कर।”
🦁 शेर का तअज्जुबअंगेज़ अंदाज़
सुभान अल्लाह!
ये सुनकर शेर ज़मीन पर बैठ गया, पूँछ हिलाने लगा जैसे कि आज्ञाकारी कुत्ता हो।
फिर वो शेर काफ़िले के आगे-आगे चलने लगा और उन्हें पूरे जंगल से सुरक्षित बाहर निकाल दिया।
लोग हैरान थे और बोले:
“आला हज़रत! ये कैसी करामात है कि जंगल का शेर भी आपके हुक्म का ताबेदार हो गया।”
आला हज़रत ने फ़रमाया:
“ये मेरी ताक़त नहीं, बल्कि अल्लाह की मदद और हबीब ﷺ की बरकत है।
💡 सबक
दोस्तों! इस वाक़्या से हमें ये सबक मिलता है कि जब इंसान सच्चे दिल से अल्लाह और उसके रसूल ﷺ से मोहब्बत करता है तो अल्लाह तआला उस इंसान की हिफ़ाज़त ऐसे तरीक़े से करता है जिसकी लोग तसव्वुर भी नहीं कर सकते।
🕊️ आख़िरी बीमारी
आला हज़रत जब अपने ज़िंदगी के आख़िरी सालों में पहुँचे तो अक्सर बीमार रहने लगे।
मगर बीमारी के बावजूद उनका इबादत और तिलावत-ए-कुरआन का सिलसिला जारी रहा।
दिन-रात वो किताबें लिखते, सवालों के जवाब देते और उम्मत को सही रास्ते की तरफ़ बुलाते।
यहाँ तक कि आख़िरी दिनों में भी उन्होंने तर्जुमा-ए-कुरआन और फतवा लिखना नहीं छोड़ा।
📜 वसीयत
आला हज़रत ने अपनी उम्मत को जो वसीयत छोड़ी, वो आज भी हमारे लिए रहनुमा है।
उन्होंने फ़रमाया:
हमेशा नमाज़ की पाबंदी करना।
कुरआन और हदीस से मोहब्बत रखना।
सच्चे दिल से अल्लाह और उसके रसूल ﷺ की इताअत करना।
औलिया-ए-किराम और नेक लोगों की सोहबत में रहना।
हर उस चीज़ से बचना जो दीन से दूर करे।
उनकी आख़िरी वसीयत का मक़सद यही था कि मुसलमान अपने ईमान को मज़बूत करें और इस्लाम पर डटे रहें।
🌹 विसाल
आख़िरकार, 25 सफ़र 1340 हिजरी (1921 ईस्वी) को आला हज़रत का विसाल हो गया।
बरैली शरीफ़ का वो छोटा-सा शहर उस दिन रो पड़ा, और पूरे हिंदुस्तान में ग़म की लहर दौड़ गई।
मगर दोस्तों! एक हक़ीक़त ये भी है कि आज भी उनके इल्म, उनकी नातें, उनके फतवे और उनका फ़ैज़ पूरी दुनिया में ज़िंदा है।
लाखों लोग आज भी उनके बताए रास्ते पर चलकर दीन की हिफ़ाज़त कर रहे हैं।
💡 सबक
दोस्तों! आला हज़रत की ज़िंदगी हमें ये सिखाती है कि जब इंसान अपनी ज़िंदगी अल्लाह और उसके रसूल ﷺ के लिए गुज़ार देता है, तो उसका नाम और काम हमेशा ज़िंदा रहता है।
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