World’s Largest Humanitarian Convoy Departs for Gaza – 44 Nations Join Hands| Middle East News

दोस्तों, इस एपिसोड में हम आपको दिखाने जा रहे हैं मिडिल ईस्ट से जुड़े वो हालात जो अब इत्तेफाक नहीं रहे, बल्कि पूरी दुनिया की आँखों के सामने हो रहे एक प्लान का हिस्सा बन चुके हैं। ग़ज़ा, इसराइल, वेस्ट बैंक, ईरान, लेबनान, सऊदी अरब, पाकिस्तान और अफगानिस्तान — इन सब से जुड़ी सबसे बड़ी खबरें आपके सामने होंगी। शुरुआत कर रहे हैं गज़ा की उन दिल दहला देने वाली अपडेट्स से जिन्हें सुनकर आपकी रूह कांप उठेगी। बीते बुधवार यानी कल इसराइली फौज के हमलों में 44 फिलिस्तीनी शहीद हुए। सोचिए, इनमें से 18 मासूम वो थे जो महज एक रोटी की लाइन में खड़े थे और वहीं गोलियों का शिकार हो गए। आज सुबह से लेकर अब तक दर्जनों गज़ा के नागरिक शहीद किए जा चुके हैं। यूनाइटेड नेशंस वर्ल्ड फूड प्रोग्राम की चीफ सिंडी मैकेन ने साफ-साफ कहा है कि सिर्फ जहाजों से खाना गिराने से गज़ा की भूख नहीं मिटेगी। उनके मुताबिक आधे मिलियन यानी 5 लाख फिलिस्तीनी अब भुखमरी के कगार पर हैं और उन पर मौत मंडरा रही है। एक और खतरनाक रिपोर्ट सामने आई है जिसमें 35 आज़ाद ह्यूमन राइट्स एक्सपर्ट्स ने दुनिया से मांग की है कि अमेरिका द्वारा बनाए गए गज़ा ह्यूमैनिटेरियन फाउंडेशन को तुरंत बंद किया जाए। वजह ये है कि जीएचएफ के हर सेंटर के आस-पास रोज़ गोलीबारी होती है और फिलिस्तीनी मारे जा रहे हैं। वहीं इसराइल डेमोक्रेसी इंस्टीट्यूट की ताज़ा सर्वे रिपोर्ट में सामने आया कि 79% यहूदी इसराइली गज़ा की जंग से परेशान नहीं हैं। जबकि 86% अरब इसराइली इस जंग को लेकर बेहद दुखी हैं। अब इससे बड़ा सबूत क्या चाहिए कि किसके लिए जंग है और किसके लिए सियासत। इन आंकड़ों से साफ है कि यह जंग एक कौम पर है, एक मज़लूम क़ौम पर। यहां तक कि खुद इसराइल में भी अब दो धड़े बन चुके हैं — एक सियासतदानों का और एक मिलिट्री जनरल्स का। इस सबके बावजूद नतनयाहू का मकसद साफ है — कब्जा और तबाही। अब मैं आपको बताता हूं वो सबसे बड़ी खबर जिसे आज The Times of Israel ने ब्रेक किया है और जिसे इस शो में सबसे पहले दिखाना जरूरी है। इसराइल अगले चार से पांच महीनों में गज़ा पट्टी के बड़े हिस्सों पर मुकम्मल कब्जे का प्लान बना चुका है। जी हां, गज़ा सिटी और मरकज़ी गज़ा से इसकी शुरुआत होगी और तकरीबन 10 लाख फिलिस्तीनियों को दोबारा बेघर किया जाएगा। यानी एक और नक़बा, एक और बर्बादी। इस मंसूबे का मकसद साफ है — हमास का खात्मा और बचे हुए 50 बंधकों की रिहाई। लेकिन सुनने में आया है कि उनमें से भी केवल 20 के ज़िंदा होने की उम्मीद है, बाकियों की सिर्फ लाशें मिलने की बात हो रही है। ये एक रि-ऑक्यूपेशन मिशन है जिसे नतनयाहू हर हाल में लागू करना चाहता है।

अब बात करते हैं उस मिशन की जिसकी वजह से ग़ज़ा एक बार फिर तबाही की दहलीज़ पर है। इस मंसूबे को लेकर इसराइल की सिक्योरिटी कैबिनेट के कुछ वज़ीर ज़रूर मुखालिफ हैं, लेकिन नतनयाहू को अब शायद बहुमत हासिल हो जाएगा। उसने पहले ही अपने फैसलों से ये दिखा दिया है कि उसे किसी की परवाह नहीं है — ना इंसानियत की, ना अपने फौजियों की और ना ही उस तबाही की जो आगे आने वाली है। इसराइली फौजी अफसरों ने पहले ही आगाह कर दिया था कि अगर इस तरह का हमला हुआ तो बंधकों की जान सबसे पहले जाएगी। लेकिन अब सियासत और मिलिट्री की राहें जुदा हो चुकी हैं। इस पूरे ऑपरेशन का असल मकसद ग़ज़ा की पूरी आबादी को जबरन साउथ यानी रफ़ा की तरफ धकेलना है, जहां पहले ही लाखों बेघर लोग अल-मवासी नाम के कथित “ह्यूमैनिटेरियन ज़ोन” में पनाह ले चुके हैं। दरअसल वो जोन अब एक कंसंट्रेशन कैंप जैसा बन चुका है, जहां कीचड़, बदबू और बमबारी के बीच लोग किसी तरह जी रहे हैं। इस पूरे प्लान को लेकर हमास ने सख्त प्रतिक्रिया दी है। हमास ने साफ किया है कि इसराइल की दोबारा ग़ज़ा पर मुकम्मल क़ब्ज़े की धमकियों को अब वो हल्के में नहीं ले रहा। डॉ. बासिम नईम, जो हमास के सीनियर ओहदेदारों में हैं, उन्होंने कहा है कि पिछले 22 महीनों से इसराइल ने ग़ज़ा की हर गली, हर मोहल्ले, हर कोने पर हमला किया है, लेकिन फिर भी कोई मकसद हासिल नहीं हुआ। उन्होंने सवाल उठाया कि अब क्या नया हासिल करोगे? क्या और ज्यादा लाशें, और भूख, और बर्बादी? आज शाम को नतनयाहू अपनी सिक्योरिटी कैबिनेट के सामने एक नया रिऑक्यूपेशन प्लान रखने वाला है जिसमें ग़ज़ा को पूरी तरह फिर से कब्ज़ा करने की बात होगी, लेकिन इसराइली आर्मी के चीफ अलजामिर इस फैसले के खिलाफ हैं। उनका कहना है कि सीमित फौजी कार्रवाई की जाए ताकि बंधकों की जान को बचाया जा सके। आर्मी जनरल्स की तरफ से ये भी आगाह किया गया है कि अगर 20 साल पुरानी गलती दोहराई गई और ग़ज़ा को पूरी तरह से फिर से कब्ज़ाने की कोशिश की गई तो बड़ी तादाद में इसराइली फौजी मारे जाएंगे। फिलहाल इसराइल की आर्मी ग़ज़ा सिटी, सुजाया, जैतून और तफ़ा के इलाकों में मौजूद है और वहीं भीषण लड़ाई जारी है। इसी हफ्ते बुध के दिन इसराइली आर्मी ने खान यूनुस के पश्चिमी हिस्सों और ग़ज़ा सिटी में नए इवैकुएशन अलर्ट जारी किए हैं और लोगों से कहा गया कि वह अल-मवासी चले जाएं। लेकिन सवाल ये है कि जहां पहले से ही बमबारी हो रही हो, वहां लोग कैसे महफूज़ महसूस करेंगे? इसराइली सेना अब ग़ज़ा सिटी के पश्चिमी हिस्सों में फिर से जमीनी हमलों की तैयारी में है, वो इलाके जहां पहले ही लाखों लोग आ चुके हैं जो पहले ही अपने घर खो चुके हैं, और अब एक बार फिर उसी आग में झोंक दिए जाएंगे।

अब जो हालात ग़ज़ा में हैं वो सिर्फ बमबारी नहीं, बल्कि एक सोची समझी नस्लकुशी है। इसराइल की आर्मी अब सेंट्रल ग़ज़ा के उन रिफ्यूजी कैंप्स को भी निशाना बनाने का प्लान बना रही है जिन्हें अब तक कुछ हद तक छोड़ा गया था। जिन इलाकों में अब तक सिर्फ सर्च ऑपरेशन किए जा रहे थे, अब वहां भारी बमबारी और टैंक हमले शुरू होने वाले हैं। इन इलाकों में लाखों लोग पनाह लिए हुए हैं, जिनमें महिलाएं, बच्चे, बूढ़े शामिल हैं। इन कैंपों पर हमला करना मतलब पूरे इंसानी ज़मीर को रौंद देना है। लेकिन इसराइल अब उस दिशा में आगे बढ़ रहा है। हमास ने इस नए प्लान को इसराइल की नाकामियों का नया चेहरा कहा है। उनका कहना है कि जो सैन्य रणनीतियां पहले नाकाम हुईं, वही अब नए नाम से दोहराई जा रही हैं। हमास ने दो टूक कहा है — अगर इसराइल खुली जंग चाहता है, तो हम भी तैयार हैं। और अगर बातचीत चाहता है, तो उसके लिए भी हम तैयार हैं। मगर भूख और तबाही के साए में कोई बातचीत नहीं हो सकती। हमास के मुताबिक दो हफ्ते पहले उसने एक नया सीज़फायर प्रपोज़ल बातचीत कर रहे मुल्कों को सौंपा था। लेकिन अब तक इसराइल ने उस प्रपोज़ल पर कोई आधिकारिक जवाब नहीं दिया है। और शायद यही खामोशी सबसे बड़ा जवाब है। आज जो हालात हैं, उनमें सिर्फ बम नहीं बरस रहे, बल्कि सियासत के फैसले इंसानियत की कब्र खोद रहे हैं। इस पूरे मसले का सबसे खतरनाक पहलू ये है कि अब इसराइल की हुकूमत और उसकी आर्मी आमने-सामने खड़ी हो गई हैं। मैं आपको कल सुबह से ये बात बता रहा हूं और अब पूरी दुनिया इस फांक को महसूस कर रही है। नतनयाहू और उसकी कैबिनेट एक तरफ हैं और आर्मी जनरल्स दूसरी तरफ। यहां तक कि नतनयाहू का बेटा याइर खुद आर्मी चीफ के बयान को बगावत करार दे चुका है। दूसरी तरफ इसराइल के कट्टरपंथी मंत्री बेंग्वीर ने कहा है कि अब वक्त आ गया है जब फौज को अपनी वफादारी साबित करनी होगी। यानी बात यहां तक पहुंच गई है कि अब आर्मी को धमकी दी जा रही है — या हुक्म मानो या हट जाओ। और इसी बीच इसराइल के डिफेंस मिनिस्टर मिसाइल कार्ड्स का बयान आया है जो और भी खतरनाक है। उन्होंने कहा कि अब फौज को हर हाल में हुकूमत का फैसला मानना ही होगा। यानी अब सेना के पास कोई विकल्प नहीं छोड़ा गया है। आर्मी चीफ का ये कहना कि हम ग़ज़ा पर सीमित कार्रवाई कर सकते हैं लेकिन पूरा कब्जा नहीं कर सकते — अब इस बात को कोई सुनने को तैयार नहीं। सियासतदानों की नजर में फौजी सिर्फ एक मोहरा है जिसे जंग में कुर्बान किया जा सकता है। और यही वजह है कि अब अंदर ही अंदर इसराइल की हुकूमत और उसकी फौज के बीच एक खतरनाक तकरार पनप रही है।
अब बात करते हैं उस दर्द की जो इजरायली बमबारी के बीच फिलिस्तीन की सरजमीं पर हर रोज़ जन्म ले रहा है। एक बच्चा अपनी मां की गोद में दम तोड़ता है, तो कहीं एक बूढ़ा बाप अपने पूरे कुनबे की लाशें उठाता है। मलबों में दबे हुए खिलौने, अधजले स्कूल बैग और खून से सनी किताबें… ये सब गवाही दे रही हैं कि यहां सिर्फ एक जंग नहीं चल रही, बल्कि पूरी एक नस्ल को खत्म करने की कोशिश की जा रही है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट भी चीख-चीख कर कह रही है कि ग़ज़ा अब बच्चों के रहने लायक नहीं रहा। लेकिन इसके बावजूद वहां की हिम्मती माएं अपने बच्चों को दुआओं में लिपटाकर स्कूल भेजती हैं, ताकि तालीम की रौशनी कभी बुझने न पाए। यही हौसला है, जो इजराइल की सबसे बड़ी ताक़त को भी झुका सकता है।

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