
दुनिया का सबसे बड़ा काफिला ग़ज़ा पट्टी के लिए रवाना होने जा रहा है। ये सिर्फ एक इमदादी मिशन नहीं, बल्कि इंसानियत की सबसे बड़ी आवाज़ है। इस बार 44 मुल्कों की शिरकत है—यानी सिर्फ कुछ जहाज़ नहीं, बल्के एक पूरा कारवां, पूरी दुनिया की तरफ़ से एक इत्तिहाद। इससे पहले भी कई बार कोशिशें हुईं। जहाज़ भेजे गए, लेकिन इसराइल ने उन्हें रोक दिया, कब्जे में ले लिया, और एक्टिविस्ट को गिरफ़्तार कर लिया। लेकिन इस बार मामला अलग है। इस बार कोई एक-दो जहाज़ नहीं होंगे, बल्के दसियों जहाज़, कश्तियां और नाव एक साथ रवाना होंगे। और सिर्फ एक्टिविस्ट नहीं, बल्के हुकूमतों के जिम्मेदारान भी मौजूद होंगे—वज़ीर, अफसर, यहां तक कि मुल्कों के सरबराह भी। इस बार इसराइल के लिए पहले जैसा करना आसान नहीं होगा। कई देशों ने अपने जहाज़ रवाना करने की तारीख़ का एलान कर दिया है—मलेशिया, स्पेन, और ट्यूनिस ने बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस करके एलान कर दिया है। ट्यूनिस में हैफा मंसूरी ने कहा कि ये दुनिया का सबसे बड़ा फ्लीट होगा—फलोटिला। अब तक 6000 लोग रजिस्ट्रेशन कर चुके हैं और दरख्वास्तें लगातार आ रही हैं।

ये फलोटिला पहले से हुई कोशिशों से बिल्कुल अलग और ज़्यादा मुनज़्ज़म है। इसमें कई तंजीमें शामिल हैं, जो मुख्तलिफ देशों से ताल्लुक रखती हैं। चार बड़ी तंजीमें इस मिशन को लीड कर रही हैं—मगरिब समूद फलोटिला, फ्रीडम फलोटिला कोलेशन, ग्लोबल मोमेंट टू ग़ज़ा और समूद एशियन सॉलिडेरिटी। इन सबका मकसद एक है—ग़ज़ा पट्टी की नाकाबंदी को तोड़ना, इंसानी हमदर्दी के लिए रास्ता खोलना और फिलिस्तीनियों की जो नस्लकुशी हो रही है, उसे रोकना। 2007 से ग़ज़ा के पोर्ट पर कोई जहाज़ लंगर अंदाज़ नहीं हो सका है। इसराइल ने हर बार रोकथाम की, यहां तक कि तुर्की के जहाज़ को भी आगे नहीं बढ़ने दिया। पिछले दो महीनों में फ्रीडम फलोटिला कोलेशन ने दो जहाज़ रवाना किए—पहला “मेडलन सी” जून में इटली से चला, लेकिन इसराइली आर्मी ने 100 मील दूर ही उसे घेर लिया, हमला किया और कब्ज़ा कर लिया। एक्टिविस्ट गिरफ्तार हुए। फिर जुलाई में एक और जहाज़ “हंज़ला” रवाना हुआ, लेकिन उसे भी 75 मील दूर रोक लिया गया। इसके बावजूद जो ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट हैं, उनके हौसले कम नहीं हुए। वो सब फिर से तैयार हैं, एक बार फिर मिलकर ग़ज़ा पहुंचने का एलान कर चुके हैं। और इस बार तैयारी सिर्फ NGO या सोशल वर्कर्स की नहीं, बल्के सरकारी सतह पर भी की गई है।

इस बार कोई एक जहाज़ या दो एक्टिविस्ट नहीं होंगे, बल्कि दर्जनों जहाज़ होंगे, छोटी-बड़ी कश्तियां होंगी, उन पर हर तरह का इमदादी सामान मौजूद रहेगा—ख़ुराक, पानी, दवाइयां, मेडिकल सप्लाई, बच्चों के लिए ज़रूरी चीजें, और वो तमाम सामान जो ग़ज़ा की घेराबंदी में फंसे हुए मासूम लोगों को ज़रूरत है। अब तक 6000 से ज़्यादा लोगों ने रजिस्ट्रेशन कर लिया है और रोज़ाना नए वॉलंटियर जुड़ रहे हैं। इस बार के फलोटिला में सिर्फ एक्टिविस्ट नहीं, बल्कि कई देशों के सरकारी ओहदेदार भी शामिल होंगे। मलेशिया के वज़ीर-ए-आज़म डॉ. अनवर इब्राहीम खुद अपने मुल्क से रवाना होने वाले काफ़िले की कयादत करेंगे। इसके अलावा स्पेन, ट्यूनिस और मलेशिया ने बाकायदा एलान कर दिया है कि उनके पोर्ट से जहाज़ किस तारीख़ को रवाना होंगे। पहला काफ़िला 23 अगस्त को मलेशिया से रवाना होगा, दूसरा 31 अगस्त को स्पेन से और तीसरा 4 सितंबर को ट्यूनिस से। इस बार सिर्फ एक-दो तंजीमें नहीं, बल्कि 44 से ज़्यादा मुल्कों की तंजीमें और हज़ारों लोग मिलकर इस मिशन को अंजाम देंगे। और इसी वजह से इसराइल के लिए पहले की तरह इन जहाज़ों को रोकना आसान नहीं होगा। मलेशिया, इंडोनेशिया, श्रीलंका, तुर्की, क़तर, यूरोप के कई देश और अरब दुनिया के कई हिस्सों से लोग इस कारवां में शामिल हो रहे हैं। पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे बड़े मुस्लिम मुल्कों की मौजूदगी पर अब तक सवाल है, क्योंकि उनका नाम अब तक सामने नहीं आया है। हर बार पाकिस्तान इंडिया के मुकाबले बड़ी-बड़ी बातें करता है, लेकिन जब बात ग़ज़ा की मदद की आती है तो उसकी मौजूदगी नजर नहीं आती। फिर भी इस बार की कोशिशें पहले से कहीं ज़्यादा बड़ी और मुनज़्ज़म हैं, और उम्मीदे हैं कि ये फलोटिला ग़ज़ा के लोगों तक ज़रूरी सामान पहुंचाएगा।

इस बार चार बड़ी तंजीमें इस काफ़िले को सपोर्ट कर रही हैं और मिलकर इसे अंजाम दे रही हैं। पहली है मगरिब समूद फलोटिला, दूसरी है फ्रीडम फ्लोटिला कोएलिशन जिसने इससे पहले भी मेटलन सी और हंजला नाम के दो जहाज़ ग़ज़ा के लिए रवाना किए थे, तीसरी है ग्लोबल मोमेंट टू ग़ज़ा और चौथी है समूद एशियन सॉलिडैरिटी। ये सब मिलकर एक आलमी मुहिम चला रहे हैं, एक ऐसा यूनाइटेड मूवमेंट जिसका नाम रखा गया है “आलमी समूद फलोटिला” यानी पूरी दुनिया के इंसानों का एकजुट काफ़िला। इनका मकसद है तीन अहम बातों को दुनिया के सामने रखना। पहला—ग़ज़ा की जो नाकाबंदी है, जो सालों से ग़ज़ा को पूरी तरह सील कर रखा गया है, उस इललीगल ब्लॉकेज को तोड़ना। दूसरा—इंसानी हमदर्दी के लिए एक रास्ता खोलना ताकि मदद बिना रुकावट पहुंचाई जा सके। और तीसरा—इसराइल की तरफ से जो लगातार जेनोसाइड हो रहा है, जो कत्लेआम और नस्लकुशी हो रही है, उसे रोका जाए, उस पर दुनिया की अदालतों में कार्रवाई हो, और इंसाफ हो। अब जब दुनिया की सबसे बड़ी अदालत इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट ने इसराइल के प्राइम मिनिस्टर बेंजामिन नेतन्याहू को बाकायदा मुजरिम करार दे दिया है, तो इस बार कोई भी कार्रवाई करना इसराइल के लिए आसान नहीं होगा। इस पर वारंट जारी हो चुका है। उनके साबिक डिफेंस मिनिस्टर के खिलाफ भी इंटरनेशनल वारंट जारी हो चुका है, और अब इसराइल के पास नैतिक या कानूनी हक नहीं रह जाता कि वो ऐसे जहाज़ों पर हमला करे जो सिर्फ इंसानी मदद लेकर जा रहे हैं। दुनिया की नज़र इस बार इस फलोटिला पर है और ग़ज़ा के लोग उम्मीद लगाए बैठे हैं कि इस बार उनकी सिसकती हुई जिंदगियों तक राहत जरूर पहुंचेगी।

और यही वजह है कि इस बार जो तैयारी है वो पिछली हर कोशिश से कहीं ज़्यादा मज़बूत और मुनज़्ज़म है। अब तक जिन 44 मुल्कों की तस्दीक हो चुकी है उनमें क़तर, तुर्की, मलेशिया, इंडोनेशिया, श्रीलंका और यूरोप के ज़्यादातर देश शामिल हैं। हर मुल्क की बंदरगाह से जहाज़ रवाना होंगे, कश्तियां रवाना होंगी, और उन पर हर तरह का इमदादी सामान होगा—खाना, पानी, दवाइयां, जरूरी मेडिकल इक्विपमेंट्स और दूसरी जरूरत की चीजें। अब तक 6000 से ज्यादा लोगों ने रजिस्ट्रेशन कर लिया है, और लगातार एप्लिकेशन आ रही हैं। सबसे पहले 23 अगस्त को मलेशिया से पहला काफिला रवाना होगा जिसकी कयादत खुद मलेशिया के वज़ीर-ए-आज़म डॉ. अनवर इब्राहीम करेंगे। उसके बाद 31 अगस्त को स्पेन से और फिर 4 सितंबर को ट्यूनिस से काफिला निकलेगा। इन तारीखों को तय करके बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस में एलान किया गया है और हर मुल्क में इसके लिए तैयारी तेज़ हो चुकी है। इस बार ये सिर्फ एक कारवा नहीं है, ये एक बयान है, ये एक एलान है कि इंसाफ और इंसानियत की आवाज़ को अब कोई नहीं दबा सकता। इस बार सिर्फ एक्टिविस्ट नहीं बल्कि गवर्नमेंट अफसरान, मंत्री, इंटरनेशनल पॉलिटिशियन्स, और ह्यूमन राइट्स के बड़े नाम शामिल होंगे। और जब इतने सारे मुल्कों की ऑफिशल शिरकत होगी, तो इसराइल के लिए पहले की तरह इन जहाजों को रोकना आसान नहीं होगा। दुनिया की मीडिया, दुनिया की अदालतें, इंसानियत से जुड़ी हर जमात अब इस काफिले को देख रही है और उम्मीद कर रही है कि ग़ज़ा के लोग जो भूख से, प्यास से, जुल्म से मर रहे हैं, अब उन्हें राहत मिलेगी, अब उन्हें जिंदा रहने का हक़ मिलेगा।
और इसी उम्मीद को लेकर दुनिया की चार बड़ी तंजीमें इस फलोटिला मिशन को मिलकर अंजाम दे रही हैं—मगरिब समूद फलोटिला, फ्रीडम फलोटिला कोलेशन, ग्लोबल मोमेंट टू गज़ा और समूद एशियन सॉलिडेरिटी। इनका मकसद सिर्फ इमदाद पहुंचाना नहीं बल्कि गज़ा की नाकाबंदी को तोड़ना, इंसानी हमदर्दी का रास्ता खोलना और फिलस्तीनियों की हो रही नस्लकुशी को रोकना है। इस बार का फलोटिला मिशन सिर्फ़ इंसानियत की एक और कोशिश नहीं बल्कि ये एक वैश्विक आवाज़ है, एक साझा विरोध है, एक ऐसा अज़ीमोशान इत्तिहाद है जो बताता है कि दुनिया चुप नहीं रहेगी। अब बात सिर्फ जेनोसाइड की नहीं, अब बात इंसाफ की है। आलमी अदालतें भी इजराइल के वज़ीर-ए-आज़म और साबिक डिफेंस मिनिस्टर को मुजरिम करार दे चुकी हैं, गिरफ्तारी के वारंट जारी हो चुके हैं। और जब इतनी बड़ी तादाद में मुल्क, सरकारें, नेता और आम लोग गज़ा के लिए एक साथ खड़े हो जाएं, तो फिर दुनिया का कोई ताक़तवर मुल्क भी उस आवाज़ को रोक नहीं सकता। अब ये कारवा सिर्फ समुंदर के रास्ते गज़ा तक नहीं जाएगा, ये एक पैग़ाम बन चुका है, एक चीख बन चुका है जो हर मुल्क, हर शहर, हर इंसान के दिल से उठ रही है कि बहुत हो गया, अब जुल्म रुकेगा, अब मदद पहुंचेगी, अब इंसानियत जीतेगी। यही वादा है, यही इरादा है और इसी यकजहती के साथ अब पूरी दुनिया की नजर इस सबसे बड़े फलोटिला मिशन पर है, जिसकी पहली लहर 23 अगस्त को समुंदर में उठेगी। क्या आप भी इस कारवा का हिस्सा बनना चाहते हैं? क्या आप भी चाहते हैं कि भूख से मरते बच्चों तक खाना पहुंचे? तो इस मुहिम का हिस्सा बनें, इसे शेयर करें, आवाज़ उठाएं। फिर मुलाकात होगी एक और अपडेट के साथ।
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